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***अधिकार***
कर्त्तव्य को भुला दिया
अधिकार मांगते रहे
पवित्रता को भूलकर
विकार मांगते रहे।
अगर न छोड़ राज्य सुख
वन को न जाते राम तो
अधिकार मिलता राज्य का
न कर्त्तव्य निभाते राम तो।
अधिकार तो मिलता उन्हें
कर्त्तव्य निभाते नहीं
राम वन न जाते तो
वे राम बन पाते नहीं।
जन जन के मन में बस गए
राम जिस व्यवहार से
क्या मिला कैकेई को
जो मांगा था अधिकार से। राम को सुयश मिला
वन जाकर मन में बस गए
राम जैसे पुत्र को
सारे पिता तरस गए।
कर्त्तव्य पर चलें अगर
अधिकार मिल ही जाएंगे
धरा का राज्य
...
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तुच्छ है
त्रैलोक्य राज्य पाएंगे।
कर्त्तव्य निभाने को ही
मिलते सदा अधिकार हैं
पर भूलकर कर्त्तव्य को
सब मांगते अधिकार हैं।
सोचो अयोध्या छोड़कर
यदि राम वन जाते नहीं
राजा तो बन जाते पर
वो राम बन पाते नहीं।
सुग्रीव से तुलना करें तो
बाली बली था कई गुना
पर बाली को छोड़ राम ने
पीड़ित सुग्रीव को चुना।
जो जीतता सबका हृदय
वह जीतता संग्राम है
क्रूरता रावण है तो
दयालुता श्री राम है।
भीलनी शबरी के बेर
अनुज संग खाते नहीं
राजा तो बन जाते पर
वो राम बन पाते नहीं।
राजा बनना सहज है
पर राम का पथ है दुरुह
राम बन पाता वही
वशिष्ठ सा हो जिसका गुरु।
त्याग की शिक्षा जिन्हें
बचपन से दी जाती रही
संस्कार उनको थे मिले
मातृ पितृ भक्ति के।
माता-पिता और गुरु को
प्रात: उठ करते प्रणाम
जिनका आदर्श चरित्र हो
वही बन पाते हैं श्री राम।
राम सहकर कष्ट भी
पिता का वचन निभाते नहीं
राजा तो बन जाते पर
वो राम बन पाते नहीं।
पिता का वचन निभाने को
यदि राम वन जाते नहीं
राजा तो बन जाते पर
वो राम बन पाते नहीं।
स्वरचित
इन्द्रसेनअग्रवाल
बिलासपुर (छ०ग०)
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hace 12 meses
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